हंस पड़ता हूँ, पूछे जब जग,
माँ की याद, तो आती होगी?
सच कहता हूँ, हंस देता हूँ,
मन ही मन, दम भर लेता हूँ।
जब हर दिन हर पल,
माँ से ही है, जीवन मेरा,
माँ से ही है,
फिर कैसे उनको भूल मैं जाऊँ?
कब न उनको याद करूँ?
हर कर्म में, उनका क़र्ज़ उतारूं,
हर साँस में, उनका नाम जपूँ।
माँ हो या ना हो धरती पे,
एहसास हमेशा रहता है,
हर पल जो बीता उनसे हो के,
ख़ास हमेशा रहता है।
प्यारी सी मुस्कान थी उनकी,
निश्चल उनके काम,
खूब कमाया प्यार उन्होंने,
उन्ही से मेरा नाम।
उनसे मैंने ये भी सीखा:
१. कि जीवन भर तुम सीखो,
२. बचपन अपना ज़िंदा रखो,
३. दुख को ना तुम खींचो।
हर पल में मैं, हर पल मेरे,
माँ के साथ जो साथ में थे,
जी लेता हूँ, बंद आँखों से,
लिखे जो मेरे हाथ में थे।
हंस पड़ता हूँ, पूछे जब जग,
माँ की याद, तो आती होगी?
सच कहता हूँ, हंस देता हूँ,
मन ही मन, दम भर लेता हूँ।
-वेदान्त खण्डेलवाल