हम चुप हैं जब बोलना चाहिए, और बँटे हुए हैं जब एक होना चाहिए।
सोचो... क्या हम कंकर हैं या पर्वत?
भारत की मिट्टी पुकार रही है —
जागो, एक बनो, वरना इतिहास दोहराएगा।
यह कविता साहित्य और विज्ञान के बीच के अंतर को दर्शाती है। कवि कहता है कि साहित्य में एक जादू है जो विज्ञान की सीमाओं को पार कर सकता है। वह कहता है कि साहित्य हमें अपनी यादों में ले जा सकता है, हमें समय में उड़ने की ताकत दे सकता है, और हमारी सोच को बदल सकता है। कवि यह भी कहता है कि साहित्य हमें अपनी रूह को छूने की ताकत देता है।
कविता का मुख्य संदेश यह है कि साहित्य विज्ञान से अलग एक अपनी दुनिया है, जो हमें नई दृष्टिकोण और अनुभव प्रदान कर सकती है।
हंस पड़ता हूँ, पूछे जब जग,माँ की याद, तो आती होगी?सच कहता हूँ, हंस देता हूँ,मन ही मन, दम भर लेता हूँ। जब हर दिन हर पल,माँ से ही है, जीवन मेरा,माँ से ही है,फिर कैसे उनको भूल मैं जाऊँ?कब न उनको याद करूँ? हर कर्म में, उनका क़र्ज़ उतारूं,हर साँस में, उनका नाम जपूँ। […]
कविता एक युवक की नौकरी की वास्तविकता को दर्शाती है, जो बड़े फ़र्म में नौकरी करने के सपने देखता है, लेकिन वास्तव में उसे दबाव और लंबे काम के घंटों का सामना करना पड़ता है। वह महसूस करता है कि पैसे के लिए लोग अपनी अकल और जीवन को बेच देते हैं
एक बालक का घर था तोड़ा बीच सड़क उसको था छोड़ा सर्द, गर्म, बारिश, हर मौसम बिन छत, बिन घर, तकते रहे हम। घर के ऊपर, घर के पत्थर, से ही बना दी बाबर मस्ज़िद, बालक देख देख मुस्काया, ये कैसा मज़हब, कैसी ज़िद? सालों साल बालक ने बिताए, बाहर हो के अपने घरों से, […]
यह कविता समय की परिस्थितियों की और जीवन की सीम्प्लिसिटी को पकड़ती है, जो आधुनिक दुनिया की जटिलताओं में खो गई है। पंक्तियों में दिखाए गए चित्रण और भावनाएँ जीवंत हैं और संबंधित हैं।