It's a poetry about a person suffering from cancer, in his last few days, sharing his thoughts and feelings
मैं मिर्ज़ापुर के झरनों से हूँ,तुम बनारस की गलियों से.मैं विंध्य पर्वत का वासी हूं,तुम शिव की पवित्र काशी से। घाटों घाटों में खो जाऊं,गंगा से अक्षर पहुचाऊं,मैं शक्ति का, तुम भोले की,नगरी-नगरी की जोड़ी थी. मैं आधा था, तुम बाकी थी.मैं मिर्ज़ापुर, तुम काशी थी। मैं मिर्ज़ापुर के झरनों से हूँ,तुम बनारस की गलियों […]
एक बालक का घर था तोड़ा बीच सड़क उसको था छोड़ा सर्द, गर्म, बारिश, हर मौसम बिन छत, बिन घर, तकते रहे हम। घर के ऊपर, घर के पत्थर, से ही बना दी बाबर मस्ज़िद, बालक देख देख मुस्काया, ये कैसा मज़हब, कैसी ज़िद? सालों साल बालक ने बिताए, बाहर हो के अपने घरों से, […]
यह कविता समय की परिस्थितियों की और जीवन की सीम्प्लिसिटी को पकड़ती है, जो आधुनिक दुनिया की जटिलताओं में खो गई है। पंक्तियों में दिखाए गए चित्रण और भावनाएँ जीवंत हैं और संबंधित हैं।
Sometimes I feel my beloved is like a home to me, where I feel most comfortable. This poem describes my feelings on this thought.