उत्तमता का पहला पाठ

हर शिशु, इस संसार में आने से पहले, एक कोरी स्लेट होता है—असीम संभावनाओं से भरा एक पवित्र बीज। माता-पिता के रूप में, हमारा सबसे पहला और सबसे गहरा स्वप्न यही होता है कि यह नवजीवन सिर्फ सफल न हो, बल्कि उत्तम हो; कि यह शक्ति और करुणा, ज्ञान और सरलता, साहस और नैतिक बल का संतुलन लेकर आए।
यह कविता किसी साधारण लोरी या कहानी से कहीं अधिक है। यह गर्भस्थ शिशु को संबोधित एक सच्ची, शक्तिशाली प्रार्थना है। यह वह पहला पाठ है जिसे माता-पिता अपने बच्चे के लिए उच्चारित करते हैं—एक ऐसा पाठ जो उन्हें भारतीय आध्यात्मिकता के सबसे महान और संतुलित आदर्शों से परिचित कराता है।
हमने जानबूझकर इस रचना को केवल एक ही गुण या देवत्व तक सीमित नहीं रखा। जीवन जटिल है, और इसे पूर्णता से जीने के लिए हमें अनेक रूपों की आवश्यकता होती है:

विवेक और ज्ञान चाहिए—इसलिए, कृष्ण के मनमोहक रूप में कर्म और धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझने की चाह है।

नैतिकता और प्रेम चाहिए—इसलिए, राम के परमार्थ और निस्वार्थ मार्ग पर चलने का संकल्प है।

सरलता और वैराग्य चाहिए—इसलिए, भोले शिव की सहजता को जीवन का आधार बनाने की कामना है।

सेवा और साहस चाहिए—इसलिए, हनुमान की अप्रतिम भक्ति और शक्ति को हृदय में धारण करने की प्रेरणा है।

आंतरिक शक्ति और निर्भीकता चाहिए—इसलिए, दुर्गा और पार्वती के रूप में शक्ति के अपरंपार स्रोत से जुड़ने का आह्वान है।

यह कविता किसी लिंग विशेष के लिए नहीं, बल्कि मानवता के सर्वोच्च गुणों के लिए लिखी गई है। यह शिशु को बताती है कि तुममें क्रोध भी है और शांति भी, तुम कोमल भी हो और शक्तिशाली भी। तुम जीवन के संतुलन का माप हो।
जब आप इस कविता का पाठ करते हैं—चाहे शांत सुबह में या सोने से पहले—तो यह केवल शब्द नहीं होते। यह आपका प्रेम, आपका विश्वास और आपके आदर्श होते हैं जो आपके बच्चे के अवचेतन (Subconscious) में गहरे उतरते हैं। यह कविता उस छोटे से जीव को बता रही है कि इस दुनिया में तुम्हारा उद्देश्य केवल अस्तित्व नहीं, बल्कि महानता है।
इसे एक संस्कार के रूप में ग्रहण करें। यह आशा है कि आने वाला यह जीवन मोह-माया में न फँसकर, सीधे एक अच्छा इंसान बनने के लक्ष्य को चुनेगा।
“तुम उत्तम हो, महान बनो।”
यही इस कविता का मूल सार है।

तुम कृष्ण बनो, तुम राम बनो,
तुम भोले शिव, हनुमान बनो।
तुम दुर्गा हो, तुम पार्वती,
तुम शक्ति अपरंपार बनो,

मैं तुमको बतलाता हूँ,
तुम भगवद् गीता पाठ सुनो,
तुम योग, कर्म, और धर्म के नाते,
पार्थ के सारे प्रश्न सुनो,
ये सारे उत्तर देने वाले,
मनमोहक हरि कृष्ण बनो।

मैं तुमको बतलाता हूँ,
तुम रामायण के कांड सुनो,
तुम धर्म मार्ग निस्वार्थ चुनो,
तुम प्रेम प्रतीक श्री राम बनो,
तुम इस युग के परमार्थ बनो,
तुम पुरुषोत्तम श्री राम बनो।

मोह-माया में न फँस कर,
तुम बस अच्छे इंसान बनो,
तुम सरल सुगम को गर्व मान,
तुम भोले काशीनाथ बनो,
तुम ध्यान के धारक, पशु के पालक,
शिव शंकर केदार बनो।

मैं तुमको बतलाता हूँ,
तुम हनुमान के गीत सुनो,
सेवा मन से, भक्ति मन से,
प्रेम भरे तुम संत बनो,
तुम राम भक्त हनुमान बनो,
तुम सर्व शक्तिमान बनो।

तुम कृष्ण बनो, तुम राम बनो,
तुम भोले शिव, हनुमान बनो।

तुम दुर्गा हो, तुम पार्वती,
तुम शक्ति अपरंपार बनो,
तुम निडर, साहसी, और नैतिकता का,
एक मौलिक आदर्श बनो।

तुम काली हो, तुम संतोषी,
तुम जीवन का आधार बनो,
तुम क्रोध बनो, तुम शांत बनो,
तुम संतुलन का माप बनो,

तुम दुर्गा हो, तुम पार्वती,
तुम शक्ति अपरंपार बनो,
बस इतना ही मैं बतलाता हूँ,
तुम उत्तम हो, महान बनो।

वेदांत खंडेलवाल

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