हरे कृष्ण

कमल नयन,
चंचल मुस्कान,
मेघ वर्ण,
आये भगवान।

मध्य रात्रि, काले मेघ,
भयंकर बारिश, सर पे शेष,
जमना पार कर जो थे आये,
कृष्णा-कान्हा वो कहलाये।

माँ को बोले,
मुख में मेरे,
समा रहा सारा संसार।
फिर भी मैं वैकुंठ छोड़ के,
चल के आया तेरे द्वार।

कान्हा-कान्हा सब ने बोला,
हर्षिल हो गई सारी दुनिया,
मधुर गीत, सुन्दर संगीत,
से आनंदित हो गई गोकुल की गलियां।

गाय, नंदी, अश्व और मोर,
घूमे उनके चारो ओर।
भोले बाबा मिलने आये,
नन्हे कान्हा मन को भाए।

पाप विनाश, श्रापित को मुक्ति,
और हुआ सृजन कल्याण।
कमल नयन, चंचल मुस्कान,
मेघ वर्ण आये भगवान।

जब इंद्र देव क्रोध में आये,
आंधी बारिश बहुत बरसाए,
गोवर्धन उठा, कानी उंगली पर,
जगन्‍नाथ फिर सब को बचाए।

उनकी लीला सबको भाए,
मोहक हो के सब खो जाएं।
प्रेम में उनके इतनी शक्ति,
झूमे सब कर उनकी भक्ति।

जनम हुआ, घर से पड़ा जाना,
कुछ बड़े हुए, फिर घर से जाना।
मित्र-परिवार-प्रेम के आगे,
कर्म और धर्म को था माना।

कठिन था जीवन,
फिर भी अटल मुस्कान,
मेघ वर्ण,
आये भगवान।

– वेदान्त खण्डेलवाल

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2 Responses

  1. Megha khandelwal says:

    Wah!!! Kitna sunder!!! Isse sunder swagat kanha ka nhi ho skta …

  2. Neha says:

    Waaah vedant bahut hi acchi kavita likhi hai bahut acchi kya shabdon ka mel hai aur kya bhaav…hindi to Lajwaab👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
    Jai Kanhaiya lal ki….

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