घर हो तुम, घर तुमसे है

जो सुकून है,
जो राहत है,
जो चैन की नींद है,
लम्बे दिन के बाद, जिसकी चाहत है।

जो जितना पुराना हो,
उतना दिल के पास है,
जिसके साथ, हर दिन,
हर लम्हा ख़ास है।

दुनिया जहाँ घूम लो,
लेकिन कुछ दिन के बाद,
इत्मिनान यहीं से है,
चाहें जहाँ ढून्ढ लो,
ठहराव यहीं पे है।

घर हो तुम, घर तुमसे है‌।

दिल खुल के हँसता जहाँ है,
मन भारी हो के रोता जहाँ है,
जहाँ के शोर की आदत हो,
जहाँ की शांति में इबादत हो।

जिसे देख के आराम आ जाए,
जहाँ पहुँच के थकान मिट जाए,
जो हर मौसम का साथी बन जाए,
जिसकी ऊर्जा से मन ख़ुश हो जाए।

घर हो तुम,
मेरा सुकून तुमसे है.
घर हो तुम,
मेरा दिन तुम तक है।

– वेदान्त खण्डेलवाल

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