कल, आज, और कल

महौल तो महौल्ले में ही बनता था,
Societies are too sophisticated!
रूल-आउट वाला बैट-बॉल ही सिम्पल था,
Association वाले Cricket matches are too complicated!

नाली में गिरी गेंद, चपा-कल के पानी से धुली हुई,
जब तेज रफ्तार में जाके बैट से लड़ती थी,
तो उस छीटें से बैट्समैन की immunity बढ़ जाती थी।
अब metro में कोई छींक दे,
तो सब के बैग से sanitizer की शीशी निकल आती है।

गिल्ली-डंडा, कंचे, और लट्टू,
ये सब भी एक तरह के खेल हुआ करते थे।
अब mobile के अंदर, और धूप से दूर रह के ही,
पूरी गर्मी की छुट्टियाँ निकाला करते हैं।

पहले त्योहार आते थे,
तो त्योहार आने की खुशी भी साथ आती थी।
अब त्योहार आते हैं,
तो महंगाई की शिकन साथ आती है।

इसलिए अब शायद सब थोड़ा कम हो गया है –
होली में रंग, बादलों के बीच पतंग,
दिवाली में पटाखे, और दिल में उमंग।

Simple सी जिंदगी को थोड़ा tough बना दिया है,
इस दौड़ते ज़माने को पकड़ के रखने के चक्कर में,
Humanity की रोड को थोड़ा rough सा बना दिया है।

शायद पहले खुशी सस्ती और ख्वाहिशें छोटी थी।
सब साथ रहते थे, और साथ नहीं तो पास रहते थे।

अब globalisation के नाम पे सब और दूर हो गए हैं,
Connected तो हैं, पर दूरियाँ भी हैं,
मन से तो पास हैं, पर अलग रहने की मजबूरियाँ भी हैं।

वो समय भी अच्छा था,
आज भी अच्छा है, कल भी शायद अच्छा ही होगा।
बस, आज में खुश रहना सीख जाओ, तो हर पल अच्छा होगा।

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