यह कविता मेरी दिवंगत मां को समर्पित है। माँ, आपकी आहट को तरसता हुँ।
माँ… जो शब्द सबसे ज्यादा बार बोला,
अब वही बोलने को तरसता हूं।
दिन भर आपके पीछे-पीछे चलता था,
अब आपकी आहट को भी तरसता हूं।
इंसान हूं तो दुख तो होता है आपके जाने का,
पर दुनिया के माया जाल को समझता हूं।
बहुत मोह था आपसे, इसी लिए एक आखिरी बार,
फिर गोदी में लेट जाने को तरसता हूं।
बहुत मन करता है,
आपको देखने का, आपको सुनने का,
फोटो वीडियो देख के मन भर लेता हूं।
पर आपको दिन भर की बातें बताने को,
और आपको खूब हसाने को तरसता हूँ।
खुश भी हूं की आपकी सारी
मनोकामनाऐं पूरी हो गई थी।
पर कुछ छोटी मोटी इच्छाओं को
पूरा करने को तरसता हूं।
बचपन से कई कष्ट देखे आपने,
फिर भी मुसकुराहत अटल रही,
यही सीख के सहारे,
जीने की कोशिश करता हूं।
वैसे तो बहुत मज़बूत बनाया है आपने,
पर कभी-कभी कमज़ोर पड़ जाता हूँ,
बहुत मन करता है जब मिलने का,
तो आसमान को देख लेता हूं।
शायद आप देख रहे हो कहीं से,
शायद हम फिर मिलेंगे,
फिर कभी आपकी गोद में लेट के,
इस अनुभव के बारे में बात करेंगे।
आपका अंश तो मैं हूँ,
पर मुश्किल है बहुत,
आपके अंश जितना भी बन पाना।
बस यही चाहत हूँ की हर जन्म
आप ही मेरी माँ बन के आना।