यह कविता प्रकृति और जीवन से जुड़े अनगिनत प्रश्नों को अपनी पंक्तियों में समेटती है। इसमें बादल, सूरज, पेड़, पानी, चाँद और सितारे—हर तत्व से संवाद है। हर सवाल हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ये सब अपनी मर्ज़ी से होता है, या किसी अदृश्य नियम से बंधा हुआ है। यह रचना सिर्फ़ प्रकृति का वर्णन नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व की गहराई में उतरने की कोशिश भी है।
माँ मेरी थी गणित में कच्ची,
पर प्यार का हिसाब उनसे अच्छा कोई न रख पाया।
उनकी साधारण सी जिंदगी,
मेरे लिए सबसे अनमोल कहानी बन गई।
बचपन की उस मासूम दुनिया में,
जहाँ सपने हक़ीक़त से ज़्यादा सच्चे थे।
यह कविता उसी उड़ान, उसी मुस्कान की याद है।
हम चुप हैं जब बोलना चाहिए, और बँटे हुए हैं जब एक होना चाहिए।
सोचो... क्या हम कंकर हैं या पर्वत?
भारत की मिट्टी पुकार रही है —
जागो, एक बनो, वरना इतिहास दोहराएगा।
यह कविता साहित्य और विज्ञान के बीच के अंतर को दर्शाती है। कवि कहता है कि साहित्य में एक जादू है जो विज्ञान की सीमाओं को पार कर सकता है। वह कहता है कि साहित्य हमें अपनी यादों में ले जा सकता है, हमें समय में उड़ने की ताकत दे सकता है, और हमारी सोच को बदल सकता है। कवि यह भी कहता है कि साहित्य हमें अपनी रूह को छूने की ताकत देता है।
कविता का मुख्य संदेश यह है कि साहित्य विज्ञान से अलग एक अपनी दुनिया है, जो हमें नई दृष्टिकोण और अनुभव प्रदान कर सकती है।