यह कविता साहित्य और विज्ञान के बीच के अंतर को दर्शाती है। कवि कहता है कि साहित्य में एक जादू है जो विज्ञान की सीमाओं को पार कर सकता है। वह कहता है कि साहित्य हमें अपनी यादों में ले जा सकता है, हमें समय में उड़ने की ताकत दे सकता है, और हमारी सोच को बदल सकता है। कवि यह भी कहता है कि साहित्य हमें अपनी रूह को छूने की ताकत देता है।
कविता का मुख्य संदेश यह है कि साहित्य, विज्ञान से अलग एक अपनी दुनिया है, जो हमें नई दृष्टिकोण और अनुभव प्रदान कर सकती है।
कल की बातें याद नहीं कुछ,
फिर, बचपन कैसे लिखता हूँ?
आँख मूंद, कागज़ लिए,
समय-सैर पर मैं निकलता हूँ।
भूत में जा के, जीता हूँ फिर,
जो जीता हूँ, वो लिखता हूँ,
विज्ञान न इसको पा पाएगा,
साहित्य में मैं तो जीता हूँ।
कथा-कहानी में जादू है जो,
भौतिक उसके पार नहीं,
नियमों में उलझा है वह तो,
इन तथ्यों के वह पार नहीं।
साहित्य है जैसे बहता पानी,
जिस ओर वह चाहे, मुड़ जाएगा,
नियमों के पत्थर को वह तो,
चीर के आगे बढ़ जाएगा।
गलत नहीं विज्ञान है पर,
है सीमित उसका ज्ञान अभी,
उम्र में नापा जाए अगर तो,
शायद बराबर धान नहीं।
सोच बदल देने की ताकत,
होती है साहित्य में ही,
रूह को छूने की चाहत,
होती है साहित्य में ही।
कुछ पढ़ के, कैसे खिंच जाते हो,
तुम अपनी बीती यादों में,
क्या समय में उड़ने की ऐसी ताकत,
होती है विज्ञान में भी?
पढ़ लो कोई सी कविता तुम,
फिर चित्रों में वो दिखती है।
जो ना बीती हो खुद पर,
वो खुद की कथनी लगती है।
जो ना हो के भी,
जो हो के, ना हो,
सब मिलते हैं साहित्य में ही।
सोच बदल देने की ताकत,
होती है साहित्य में ही,
रूह को छू लेने की चाहत,
होती है साहित्य में ही।
-वेदान्त खण्डेलवाल