पहला पार्ट यहाँ पढ़ें – तू कैसे समझ लेती है माँ
तू कैसे समझ लेती थी मुझे मां?
तुझे कैसे पता चल जाता है,
जब मुझे भूख लगती है?
क्या तेरे पेट में भी,
कुछ गुडगुड होती है?
चाहें जितना सब डाँट ले मुझे,
जब मै कोई सब्ज़ी नहीं खाऊँ.
लेकिन फिर सब से छुपा के,
क्यों मेरी फेवरेट सब्ज़ी बनाती थी?
क्यूंकि तझे डर रहता है की मै खाली पेट ना सो जाऊँ?
सब स्कूल में कहते थे की वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं,
तूने भी बचपन से यही कहा,
कई साल बीत जाने पे, सब बदल गए,
लेकिन तेरी दोस्ती का रिश्ता वैसा ही रहा.
जब भी पापा से कोई सिफारिश लगवानी होती थी,
तेरे पीछे छुप जाता था,
और मेरी जगह तुझे सुन्ना पड़ता था,
तू ऐसे क्यों करती थी माँ?
स्कूल ट्रिप्स, या किसी की b’day पार्टी,
या फिर घर पे जब भी मैं लेट आया,
हर चीज़ के लिए तूने ही मुझे बचाया.
अच्छा ये तो बता दे,
की मेरे ही रूम में,
मेरी ही रखी चीज़ मुझे नहीं मिलती,
तो तू कैसे तुरंत ढून्ढ के ले आती है?
ये सब तू कैसे करती है?
भले ही हम अलग शहरों में रहते हों,
लेकिन अगर किसी दिन ऑफिस से घर आने में देर हो जाए,
तो तू बिना चेक किये की मैंने खाना खाया या नहीं,
कोई चांस ही नहीं की तू बिना जाने चैन से सो जाए.
तुझे बिन बताए सब पता चल जाता था,
की मेरे मन में क्या चलता था.
अब तू दूर हो के भी पास है,
मुझे पता है तू हमेशा मेरे साथ है.