मैं मिर्ज़ापुर के झरनों से हूँ,
तुम बनारस की गलियों से.
मैं विंध्य पर्वत का वासी हूं,
तुम शिव की पवित्र काशी से।
घाटों घाटों में खो जाऊं,
गंगा से अक्षर पहुचाऊं,
मैं शक्ति का, तुम भोले की,
नगरी-नगरी की जोड़ी थी.
मैं आधा था, तुम बाकी थी.
मैं मिर्ज़ापुर, तुम काशी थी।
मैं मिर्ज़ापुर के झरनों से हूँ,
तुम बनारस की गलियों से.
मैं विंध्य पर्वत का वासी हूं,
तुम शिव की पवित्र काशी से।
जब समय हुआ, और योग बना,
कौशल से कौशल में मिलना,
अब राम प्रांत में लिखा था जो,
वो होना था, होना ही था.
ये प्रेम था जो, वो आज भी है,
जन्मो जन्मो का साथ भी है.
मैं आधा था, तुम बाकी थी.
मैं मिर्ज़ापुर, तुम काशी थी।
मैं मिर्ज़ापुर के झरनों से हूँ,
तुम बनारस की गलियों से.
मैं विंध्य पर्वत का वासी हूं,
तुम शिव की पवित्र काशी से।
-वेदान्त