भारत वर्ष में और सनातन धर्म में प्रश्न करना कोई गलत बात नहीं है, बल्कि उसे सत्य और ज्ञान की परीक्षा का रूप दिया गया है। महर्षि और विद्वान तर्क किया करते थे, और फिर उस गंभीर प्रश्नोत्तर सभा के बाद, सभी में वो ज्ञान बाटा जाता था। उपनिषद भी बिना प्रश्न किये नहीं लिखे गए।
प्रश्न करना गलत नहीं है, गलत है अंध-विश्वास, गलत है ज्ञान ना होना, गलत है बिना प्रश्न के गलत राह पे चलना, क्यूंकि बाकी सब भी वही कर रहे हैं।
इसी विचार से प्रेरित हो के मैंने यह कविता लिखी है। आशा करता हूँ आपको पसंद आएगी।
कुछ पता ना था, की क्या हूँ मैं,
ना ख़ुशी ही थी, ना खफा था मैं,
बस गुम रहता अपनी धुन में,
किन्ही अनसुलझे से प्रश्नो में।
पूछा करता था दुनिया से,
की क्यों आया हूँ इस जग में,
ना पैसों से, ना काया से,
ना मोह हुआ इस माया से।
फिर पढ़ा लिखा तो पता चला,
की प्रश्नो से ही हुआ विकास,
जो प्रश्न करे, और हल ढूंढे,
वो अंधकार में करे प्रकाश।
जो रट रट रट रट, रटता जाए,
बिन शंका के ही खुश हो जाए,
वो सही नहीं, वो गलत नहीं,
बस मंद-बुद्धि मानुष हो जाए।
कुछ नया करो, कुछ नया बनो,
कुछ देख देख, कुछ पूछ सीख,
कुछ समझ परे, तो प्रश्न करो,
कुछ गलत लगे, तो प्रश्न करो।
जो अर्जुन था हार चूका,
अस्त्र-शस्त्र सब त्याग चूका,
जब प्रश्न किया, तब आँख खुली,
फिर धर्म जीत उसे प्राप्त हुई।
लड़ो नहीं, तुम तर्क करो,
फिर सही गलत में फर्क करो,
निचा दिखाने का मन से भाव निकाल,
साफ़ मन से करो सवाल।
– वेदान्त खण्डेलवाल
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