सूखी ज़मीं, सूखा आसमां,
जहाँ कुछ ना मिले, कुछ ऐसा ही था समा।
जहाँ बूँद बूँद भी काफी थी,
जहाँ घाँस फ़ूस भी बासी थी,
जहाँ जानवर भी नहीं आते थे,
चलने और चरने को,
बस धूप, रेत और गर्म हवाएँ ही मिली थी,
जीने और मरने को।
उस बंजर ज़मीं से निकल के,
घूम ली पूरी दुनिया,
क्षेत्र से मारवाड़ी,
काम से कहलाए बनिया।
मारवाड़ का अर्थ है मरुस्थल,
वाणिज्य से बना बनिया,
इनके बिना अधूरी है अर्थव्यवस्था,
जैसे हरी चटनी बिना धनिया।
अब जो सूखे रेगिस्तान से आया हो,
वो तो पानी की बूँद भी ना गिरने दे,
जैसे हो वो गन्ने का जूस,
पर इसी स्वाभाव और आदत, को लोगो ने समझा,
की मारवाड़ी होते हैं कंजूस।
जिंदल, बिरला, बजाज हो या,
मित्तल, कोटक या अम्बानी।
व्यापारी होंगे कई भारत में,
लेकिन सबसे बड़ा होगा मारवाड़ी।
पैसों की क़द्र करना या,
सही चीज़ पे खर्च करना,
ये कंजूसी नहीं, निशानी है अच्छे व्यापारी की,
गाड़ी छोटी और शादियां बड़ी, यही पहचान है मारवाड़ी की।
जिसे स्कूल कॉलेज में करते थी बदनाम,
उसी मारवाड़ी दोस्त के निचे हो सकता है करना पड़े बाद में आपको काम।
मारवाड़ी दोस्तों को बनाए रखो अपना ख़ास,
तो लक्ष्मी जी का घर में रहेगा हर दम निवास।
वेदान्त खण्डेलवाल