हर पेड़ कुछ कहता है

scenic view of the forest during sunrise

हर पेड़ कुछ कहता है, बस हम रुक के सुनना नहीं चाहते। पहले हर जगह पेड़ थे, अब हम रोड ट्रिप पे जाते हैं पेड़ देखने। आपने समय निकाला, अच्छा लगा! आपका और समय ना लेते हुए, चलिए शुरू करते हैं –

यूँ तो मेरी पहुंच है आसमान तक,
पर पाओं अभी भी टिका के रखता हूँ ज़मीन पे।
मेरे बुज़ुर्गों ने दिखाई मज़बूत रहने की तरकीब मुझे
बोले, ऊंचाई पे कम दे ध्यान, ज़मीन पे रहने से आएगी ताक़त तझे।

यूँ तो बहुत अमीर हूँ मैं,
कोई कमी नहीं है मेरे पास।
कुछ लम्हे बैठ के बातें कर ले कोई राह गुज़र,
यही है बस एक छोटी सी आस।

यूँ तो मेरी ताक़त का कोई मुक़ाबला नहीं है,
जब ठान लूँ, तो तोड़ सकता हूँ छत, ज़मीन, और दिवार।
किसी का बुरा कभी नहीं चाहा मैंने,
पर मेरे ऊपर घर बना के क्यों बनने चला था तू होशियार!

यूँ तो तुम्हारे लिए ही बना हूँ मैं।
पर तुम समझते ही नहीं।
धुप से ले के धुल तक, सब से तुम्हे बचता हूँ मैं।
फल से ले के फूल तक, सब तो तुम्हे देता हूँ मैं।

तुमसे चाहा तो बस थोड़ी सी ज़मीन, साफ़ हवा-पानी और बहुत सारी धुप।
ज़मीन तुमने मुझसे छीन ली, हवा-पानी जीने लायक ना छोड़ा,
और धुप…
बना दी बड़ी इमारतें, जो अब अनचाही छाँव देती हैं मुझे।

डरते तो हो तुम मेरे चले जाने से,
तभी कुछ दोस्तों के साथ मिल के,
कभी कभी कुछ पौधे लगा के,
मेरे वंश को आगे बढ़ा देते हो।

लेकिन अब नहीं रह पाता मैं तुम्हारे इस शहर में।
जहाँ मेरे पैर पे नमी वाली घास की जगह,
धुप में सिकती गरम सीमेंट की ज़मीन है।
जहाँ मुझे खुल के बढ़ने की आज़ादी नहीं,
मेरे चारों और लोहे के जाल हैं।

अपने खाने की तरह,
तुमने मेरे खाने में भी ज़हर मिला दिया।
मैं अब वो नहीं हूँ जो मैं था,
तुमने जीते जी मेरा वजूद मिटा दिया।

जैसे हिमनद (glacier) ख़त्म हो रहे हैं,
वैसे ही हम भी चले जाएंगे।
तब किस लकड़ी से बनाऐंगे ताबूत?
और किस लकड़ी से अपनों को मुक्त कराएंगे।

अब वापिस तो नहीं जा सकते तुम समय में,
लेकिन हमें कुछ और समय तो दे सकते हो हमारे ही घर में!
प्लास्टिक खिलौनों तक ठीक थी, हमें प्लास्टिक का मत बनाओ,
कुछ साल बाद अगर केवल हमें प्रयोगशाला (lab) में नहीं देखना है, तो असली पौधे लगाओ।

Categories:

Archives
Follow by Email
LinkedIn
LinkedIn
Share
Instagram