मेरी तीन बहने

यह कविता मेरे दिल के बहुत करीब है, क्योंकि इसमें मेरी बचपन की बहुत सारी यादें हैं। यह मेरी बहनों के बारे में है। मेरी तीन प्यारी बहनें।

सच कहूं, तो बचपन का बहुत कुछ याद नहीं,
लेकिन कुछ यादें ऐसी हैं लगता है कल की ही हैं।

कुछ मासूमियत भरी, तो कुछ जिनमे खुशियां हैं बसी,
तो कुछ दुख या डर वाली, अब याद कर जिनको आ जाती है हसी।

वैसे तो मम्मी के पीछे पीछे ही रहता था मैं,
लेकिन दिन भर मेरा मन लगा कर रखती थी मेरी तीन बहनें।

सबसे बड़ी सबसे समझदार, दूसरी हड़काने में होशियार,
और तीसरी लड़ने को तैयार। लेकिन सब करती हैं मुझसे बहुत प्यार।

बहुत ही खुश हुई तीनो, जब उनका छोटा सा भाई आया।
खुद भी छोटी ही थी, लेकिन तीनो ने मां का भी फर्ज़ निभाया।

जब स्कूल गया, तो घर की याद आते ही,
अपनी बहनो की क्लास में जा के रो पड़ा।
अपनी क्लास छोड़, मुझे चुप कराती थी,
ये तीनो बड़े होने का पूरा फ़र्ज़ निभाती थी।

जब दही खाने की ज़िद की,
तो दौड़े दौड़े मेरे लिए दही लेने जाना,
जब क्रिकेट खेलने का किया मन,
तो आसान गेंद करा के मेरे ख़ूब बनवाए रन।

जहां जहां अंधेरे से डर लगता था मुझे,
तो मेरा हाँथ पकड़ के मुझे हर रस्ता पार कराया,
और याद है, मुझे आप तीनो ने खूब घर-घर और टीचर-टीचर भी खिलाया।

कभी लड़ाई की हो या रुलाया हो तो माफ़ करना,
छोटा हूं, मेरी बातों को छोटा समझ के अपना मन साफ ​​रखना।

आपका छोटा भाई क्यूट से बोरिंग कब हो गया पता नहीं चला,
कुछ घर से दूर रहने पे, और कुछ ज़िन्दगी ने बड़ा कर दिया।

कुछ भी कहूं, हमेशा कम ही रहेगा,
कुछ भी करूँ, हमेशा कम ही रहेगा।
आप तीनो किसी से कम नहीं हो मेरे लिए,
एक ही दिन नहीं, हर दिन रक्षाबंधन है मेरे लिए।

मैं बड़ा हो रहा था, और आप लोग की शादी हो रही थी,
कुछ समझ भी नहीं आया था तब, की अब आप अपने दूसरे घर रहने जा रही थी।

ना कोई था ये सब बात करने को, ना आप सब से कभी कह पाया,
पर न त्योहारों में, न घर में फिर से मन लग पाया।

मैं तो यही मांगुंगा हमेशा, की अगर मुझे फिर से इंसान बनाना,
यही मम्मी पापा, और बहने देना, यही है मेरा खज़ाना।

-आपका छोटा भाई,
(वेदांत / वेदु / वेदी)

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