मुझे बड़ा क्यों होना था?

Why I Wanted To Grow Up – Hindi Poetry
जब छोटे थे तो,हम सब बड़ा बनना चाहते थे। अब जब बड़े हो गए हैं तो लगता है असली आज़ादी बचपन में ही थी। अब यही पूछता हूँ ख़ुद से की – मुझे बड़ा क्यों होना था?

बचपन कितना सुहाना था,
वो एक अलग ही ज़माना था।
वो मासूम से सपने,
थे सारे घर वाले अपने।
और छोटी छोटी सी ख्वाहिशें,
चुटकियों में पूरी होती थी फरमाइशें।

दुःख किस बात का था?
बस मम्मी पापा की डाँट का था।
नन्ही सी चीज़ों में ख़ुशी मिल जाती थी।
और जो ना मिले, तो अगले ही पल कोई दूसरी चीज़ दिल लुभाती थी।

कभी किसी की पेंसिल ले आते थे,
तो कभी किसी को रबर दे आते थे।
टॉफ़ी के बदले में, यही लेन-देन की समझ थी।
हाँ, नया पेंसिल-बॉक्स दोस्तों को दिखाना अच्छा लगता था।
लेकिन दिखावा तो जानते भी नहीं थे क्या होता था।

इन सब के बीच एक चाहत थी,
बड़े होने की।
ना जाने क्या अच्छा लगता था बड़े लोगों में,
शायद उनकी आज़ादी।

कॉलेज, ऑफिस, पैसे,
ये सब बड़ी मज़ेदार चीज़े लगती थी।
ख़ुद का घर बनाना,
और एक अच्छी सी गाड़ी चलाना,
ये सब आसान सी मंज़िल लगती थी।

मुझे बड़ा क्यों होना था?
इन प्यारे से दिनों को क्यों खोना था?

बड़े होने पे “सच” से दोस्ती हुई,
बड़ा साहसिक दोस्त है ये।
जो है साफ़ बोल देता है,
सबके और अपने भी राज़ खोल देता है।
इसने मुझे काफी कुछ बताया,
और बड़े होने का घाटा भी समझाया।

ज़रूरी नहीं की जो अच्छा लगे वो मिल जाए,
और हमे हमेशा वो ही अच्छा लगता है जो,
हमारे पास नहीं होता।

आज़ादी तो मिली,
लेकिन एक ज़िम्मेदारी के पिंजरे में घूमने की।
अब पैसे हैं पर ख्वाहिशें नहीं,
वो मासूम से फरमाइशें नहीं।

दुःख अब डाँट का नहीं,
मम्मी पापा की तबियत का हो जाता है।
लेन-देन तो अब जाना है,
पैसों के बदले इंसान भी बिक जाता है।

यार, mario और contra में जो ख़ुशी मिलती थी ना,
वो अब प्रमोशन में भी नहीं।
एक चम्मच ज़्यादा मैगी में जो ख़ुशी थी ना,
वो अब पूरे पैकेट में भी नहीं।

दिखावे में ज़िन्दगी खराब कर रहे हैं,
आम्दानी 500 खरचा 1000 कर रहे हैं।

अब पता चला की कॉलेज, ऑफिस, पैसों
से कही गुना बेहतर थी वो आज़ादी बचपन की।
अब ना ख़ुद पे भरोसा है ना किसी और पे,
यही कहानी है पचपन की।

मुझे बड़ा क्यों होना था?
इन प्यारे से दिनों को क्यों खोलना था?

तब बड़े होना चाहते थे,
और अब बच्चे।
हम तब भी ये नहीं जानते थे,
आज भी है इस चीज़ में कच्चे,
की वर्तमान के पल ही हैं सबसे अच्छे।

जो ना सीखा इस सीख को,
वो भूत, भविष्य में रह जाएगा।
जो सीखा इस सीख को,
वो ही वर्तमान में जी पाएगा।

-वेदांत खंडेलवाल

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